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Wednesday, 17 December 2014

प्रभातरंजन सरकार उर्फ आनन्दमूर्ति (स्व0) | अंगिका साहित्यकार | Prabhat Ranjan Sarkar alias Anand Moorti (Late) | Angika Litterateur

 

प्रभातरंजन सरकार (आनन्दमूर्ति) (स्व0) | अंगिका साहित्यकार |
Prabhat Ranjan Sarkar (Anand Moorti (Late) | Angika Litterateur

 

 

प्रभातरंजन सरकार (आनन्दमूर्ति) (स्व0)

जन्म तिथिः वैशाखी पूर्णिया 1921 ई0 स्वर्गवस 21 अक्टूबर 1990 ई0।
जन्म 21 मई 1921
जन्म स्थान - जमालपुर (मुंगेर)

पिता - लक्श्मीरंजन सरकार।

माता - आभारानी सरकार।

आनन्द मार्ग जैसी अर्न्तराश्ट्रीय संस्था के संस्थापक प्रभातरंजन सरकार की ख्याति आनन्दमूर्ति के नाम से अधिक है। आप हिन्दी के साथ-साथ अंगिका में भी लिखते थे। इन्होनें विभिन्न विशयों में सैकड़ों पुस्तकें लिखी हैं। अंगिका में गीत लिखते थे जिसको स्वयं सुमधुर सुर में गाते थे। 

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Section - 2 - As per रंजीव ठाकुर  Edited : 22/10/2017

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बाबा नाम केवलम वाले आनंद मार्ग के प्रवर्तक श्री श्री आनंदमूर्तिजी उर्फ श्री प्रभात रंजन सरकार का जन्म 21 मई 1921 में वैशाखी पूर्णिमा को बिहार के मुंगेर जिला के जमालपुर में हुआ था। आज के दिन 21 अक्तूबर 1990 को आनंद मार्ग के केंद्रीय कार्यालय तिलजला, कोलकाता में उन्होंने शरीर त्याग दिया था। उन्होंने आत्मा की मुक्ति के साथ समाज सेवा के उद्देश्य से 1955 में आनंद मार्ग प्रचारक संघ की स्थापना की थी।


आनंदमूर्ति आध्यात्मिक दर्शन के साथ संगीत, भाषा विज्ञान, कृषि विज्ञान, अर्थ शास्त्र, समाज शास्त्र, मनोविज्ञान, राजनीति शास्त्र, धर्म शास्त्र, नारी मर्यादा, शिशु साहित्य, योग-तंत्र, इतिहास, भारतीय दर्शन, पर्यावरण इत्यादि विषयों पर सैकड़ों पुस्तकें लिखीं है। उन्होंने मात्र आठ वर्षों की अवधि में आठ भाषाओं (हिंदी, बांग्ला, संस्कृत, उर्दू, अंगरेजी, अंगिका, मगही और मैथिली) में 5018 गीत रचे और उन्हें संगीतबद्ध भी स्वयं ही किया, जो प्रभात संगीत के नाम से प्रचलित है। श्रीश्री आनंदमूर्तिजी ने धर्म दो श्रेणियों में विभाजित किया है- पहला स्वाभाविक धर्म और दूसरा भागवत धर्म. स्वाभाविक धर्म का अर्थ है जिसके करने से दैहिक संरचना की पुष्टि हो यानी आहार, निद्रा, भय व मैथुन. भागवत धर्म वह है जो मनुष्य को दूसरे जीवों से पृथक करता है।


स्वाभाविक व भागवत धर्म, दोनों का उद्देश्य सुख पाना है। उनके शब्दों में समस्त जीव जगत से प्रेम करना ही है नव्य-मानवतावाद है। श्रीश्री आनंदमूतिर्जी मूलतः आध्यात्मिक गुरु हैं, किंतु समाज गुरु प्रभात रंजन के रूप में उन्होंने सामाजिक, सांस्कृतिक व अार्थिक सिद्धांत दिये, जो संक्षिप्त व सारगर्भित रूप में प्राउत नाम से प्रचलित हुआ है। श्रीश्री आनंदमूर्ति ने अपने जीवनकाल में ही 180 देशों में आनंद मार्ग के सन्यासी भेज कर भागवत धर्म का प्रचार करवाया है विश्वभर में आनंद मार्ग के 1000 से अधिक प्राथमिक विद्यालय, उच्च विद्यालय, महाविद्यालय, शिशु सदन, अस्पताल, नारी कल्याण केंद्र, अमर्ट द्वारा संचालित सैकड़ों राहत सेवा केंद्र और मास्टर यूनिट प्रोजेक्ट-ग्रामीण विकास परियोजनाएं चलायी जा रहीहै।


प्रभात संगीत प्रभात रंजन सरकार द्वारा रचित पांच हजार अठारह गानों का समुच्चय है । 14 सितंबर सन 1982 से लेकर 20 अक्तूबर, 1990 तक की मात्र आठ वर्षों की अवधि में श्री प्रभात रंजन सरकार ने गीतों के इस विशाल भंडार की रचना की, जो मानव-मनीषा के लिए एक अभूतपूर्व कार्य है। उन्होंने मानवता के कल्याण की अपनी विराट योजना के अंतर्गत ही यह रचना की। प्रभात संगीत का मूल स्तर आध्यात्मिक पुनर्जागरण है। वास्तव में संगीत और सृष्टि के रहस्य को समझकर जीवन के परम लक्ष्य को प्राप्त करना ही आध्यात्म का मूल है। विराट के आकर्षण से अभिभूत मुमुक्ष मानव सागर की उत्ताल तरंगों में, पक्षियों के कलरव में, मेघ की गर्जना में, नदी की कलकल धारा में, यहां तक कि शून्याकाश में व्याप्त अखंड नीरवता में भी सतत् प्रवाहमान संगीत के आनंद का अनुभव करता है। उसमें हृदय का यही आनंद और आकर्षण प्रेम में पर्यावसित हो जाता है, जिसे भक्ति की संज्ञा दी जाती है।


एक भक्त के हृदय के भाव और वृत्तियां शब्दों का रुप धारण कर जब सुर और छंद से संयुक्त हो जाते हैं, तब भजन अथवा भक्तिगीत की रचना होती है। ये गीत प्रभु-प्रेम से सने हुए होते हैं। प्रभात संगीत ऐसे ही भक्तिगीतों का अथाह सागर है। भाव-भाषा, छंद और सुर सभी दृष्टियों से यह एक आकर्षण, दर्शन, मिलन, निवेदन, विरह, उलाहन एवं समर्पण आदि सभी भाग समाहित है। प्रभात संगीत का मूल स्तर आशावादी है, जो हमें अंधकार से प्रकाश की ओर चलने की प्रेरणा देता है। आशा और विश्वास की राह दिखाने वाले ये गीत आज के विक्षुब्ध मानस के लिए अत्यंत उपयोगी हैं।

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